नवयुग की काली चादर
नवयुग की काली चादर
आज का मानव मानवता को भूलता जा रहा है।
मानवता का झूठा मुखौटा सजाता जा रहा है।
आज की दुनिया स्वार्थी हो रही है ।
मानवता की अर्थी उठ रही है।
आज लोगों का मन काला हो रहा है।
आज लोगों का दिल काला हो रहा है।
आज लोगों की नजरें काली हो रही है।
यह सब देख कर मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है।
आज बुढ़ापा में लोग मां बाप के सौदे करके
अपने हाथ काले करके
मानवता का सबसे बड़ा जघन्य अपराध कर रहे हैं।
आज के पुरुष कर रहे हैं भूल
नारी को एक खिलौना समझकर
अगर ऐसा ही रहा तो कल नहीं रहेगा किसी का कुल।
आज लोग पाप और अपराध में लीन है ।
अपने कर्मों से विहीन है।
उन्हें सबक देता है यह ज़माना।
मरने के बाद फिर दोबारा ना आना।