जीवन का अंतिम सपना।
जीवन का अंतिम सपना।


काल का कपाल जब मानव को घेर लेता है।
मानव मौत की शैया पर सो जाता है।
निश्चिंत और बेफिक्र सपने में खो जाता है।
जब तक थी जिंदगी मैं फिक्र में खोया था।
मैंने स्वार्थ के लिए अपनों को धोखा दिया।
मैंने अपने मानव तन को सत्कर्म से दूर कर
कुकर्मों में लिप्त रखा।
मैंने अपनों को खुद से दूर किया।
दुखियों को दर्द दिया।
गरीबों को बेसहारा किया।
लोगों से झूठे वादे किए।
ईमानदार को लाचार किया।
बेसहारों को बर्बाद किया।
मगर खुद आबाद रहा।
अब मैं अकेला हो गया।
अपनों ने मुझे छोड़ दिया।
अब मुझे समझ में आया।
मैंने यह सब करके अपना जीवन बर्बाद किया।
अब वक्त भी हमसे रूठ गया।