मेरा हुज़ूर!
मेरा हुज़ूर!
रखता हूँ अंधेरों को
बन्द कमरे में कहीं
उजालों से कहता हूँ
उनसे दूर ही रहे
कहीं गर दोनों
मिल गए तो
यह एक हो जाएंगे।
मेरे यह अंधेरें
इन उजालों में
कहीं खो जायेंगें
इन उजालों का आना
कहाँ मेरे लिए
यह तो सदा ही रहे हैं
किसी और के लिए।
मैं गरीब हूँ तन्हा हूँ
मुफ़्लिसी मेरा मुक़द्दर
यह अंधेरें ही
मेरे अपने हैं
जो रहे सदा मेरे रहबर
कैसे जाने दूँ भला।
जो कमाया है उसे
जो मेरा नही है
क्यों मेरा अंधेरा भाया है उसे
बदलाव गर ज़रूरी है
तो होकर ही रहेगा
लेकिन यह बदलाव
कितनी देर रहेगा।
यह पर्व है दीपों का
दीप जलेंगे ज़रूर
पर जिसका दिल जल रहा हो
वो क्या करें हुज़ूर
आदतन बाबस्ता है।
हम फ़क़ीरों की झोली
जो दुआओं और सदको की
सदा रही है हमजोली
फिर ऐ खुदाया !
यह सितम कैसा है
तेरा एक बेटा बेइंतिहा कंगाल
और एक के पास बेइंतिहा पैसा है
बात पैसे की नहीं है
बस अख़लाक़ और तज़ुर्बे की है
दिल भी उसी का नरम रखा
जेब जिसकी खाली है।
तेरी रहमत है कुछ तो तेरा नूर है
हम दोनों ही हाथ खाली आये
हम दोनों को हाथ खाली जाना ज़रूर है
मुझे यह सबक याद है।
शायद वो भूल बैठा है
इसीलिए तन्हा वो
खुद से ही रुठ बैठा है
सबकुछ है उसके पास
बस समय नहीं है।
मैं ही वाहिद शख़्स हूँ
जिसके पास कुछ नहीं है
बस समय ही समय है
तेरी बन्दगी करूँ या
करूँ तेरे बन्दों की सेवा
यह मेरा अक़ीदा है।
जो तूने मुझ पर रख छोड़ा है
मैं मान गया तुझको
जान गया तुझको
अब तेरी रहमत को पाया है
यह अंधेरा ही मेरा
तेरा सरमाया बनकर आया है।
अब उजाले का नूर है
वो तेरा ही शुरुर है
मैं तेरा बन्दा हूँ मालिक !
बस तू एक मेरा हुज़ूर है।
