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Dheeraj Dave

Romance

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Dheeraj Dave

Romance

कितना दूर

कितना दूर

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कितना दूर जाना है तुमको, 

कितना दूर, तारों पर?

तारों को तो मैं अक्सर ही रातों में 

छत पर बैठे आसानी से देखूँ हूं

शेर सुनाऊं गजलें गाऊं, बात करूं।


कितना दूर जाना है तुमको, 

कितना दूर, समंदर पार ?

व्हाट्सएप्प, वीडियो कॉल  

फ़ोन क़ी घण्टी भी

तुझको मुझको रोज ही मिलवा सकती है।


कितना दूर जाना है तुमको,

कितना दूर

एक बिस्तर के एक कोने में लेटोगी ?

मुझसे ना तुम बात करोगी, देखोगी

दो तकियों की सरहद भी बनवाओगी

हुंकारों में सिसकी की धुन गाओगी

माथे पर शिकवों की सलवट खेचोगी

क्या तुम मेरी चादर भी ना खिंचोगी।


हाय ! ऐसी बिरहा कौन बिताएगा

खुदकी कुटिया खुद ही कौन जलायेगा

माफी ! माफी ! माफी !

मुझको माफ करो

इस दूरी को पार लगाना मुश्किल है।


इक कमरे के दो लोगों की चुप्पी में

अहसासों का शोर मचाना मुश्किल है

मान गया हूँ गलती, अब तो बिसराओं

छोड़ो भी इस गुस्से को अब आ जाओ।


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