उनको बताओ ज़रा
उनको बताओ ज़रा
उनको बताओ ज़रा,
जो नंगे बदन सर्दियों में घूम रहे हैं फुटपाथों पर,
जो बीन रहे हैं कूड़े से रोटी,
जो अछूत हैं हमारे लिए,
उनको बताओ ज़रा
कि देश आज़ाद हो चुका है,
और अब अत्याचार भूरी चमड़ी का है,
कि हम कर रहे हैं रोज़ बहसें राजनीतिक सिद्धान्तों पे,
कि हम अंतरिक्ष पहुंच चुके हैं,
बताओ उन्हें कि हमें इस देश पर गर्व है,
कहो उनसे गाने को राष्ट्रीय गान हर रोज़,
कीचड़ खाने से पहले,
मांगो उनसे भी इस देश के लिए,
गर्व और प्रेम,
उस बाप से जिसका बेटा शहीद हुआ है,
गोली नहीं बल्कि सर्दी से,
पूछो उनसे उनके धर्म, उनकी ज़ात,
पूछो क्या गर्व नहीं उन्हें,
उनके राजपूताना का, उनके मराठे का,
उनके हिंदुस्तानी होने का,
क्या नहीं लड़ना उन्हें सामने वाले से,
बस यूं कि वो हम में से नहीं।
मांगो उनसे भी खून और बलिदान,
और बदले में परोसो उन्हें,
थोड़ी और लाचारी।