माँ
माँ
मेरी माँ को सबसे ज़्यादा प्यार मैंने ही किया है,
ये कहना तोह चाहता हूँ,
पर कह नहीं सकता,
ऐसा कहना पिताजी के प्यार को निचा दिखाना होगा,
मेरे बड़े भाई, मेरे माँ के पापा, उनकी माँ,
सबके प्यार को चुनौती देना होगा,
पर मैं इतना कह सकता हूँ,
कि मैंने सबसे ज़्यादा प्यार अपनी माँ को किया है,
मेरे अंदर जितना प्यार था उतना,
जितना प्यार करने कि काबिलियत मुझमें थी, उतना,
शायद उनको प्यार करने के लिए,
मैंने प्यार करना सीखा,
और फिर उन्हें प्यार किया,
मेरी माँ ने सबसे ज़्यादा प्यार मुझसे किया,
ये कहना तोह चाहता हूँ,
और शायद ये सही भी हो,
पर ऐसा कहना फिर पापा, भाई, नाना, नानी,
सब के साथ अन्याय होगा,
माँ किससे सबसे ज़्यादा प्यार करती थीं,
करती हैं,
वो जानती हैं,
पर ये मैं पूरे दावे से कहता हूँ,
कि मुझे सबसे ज़्यादा प्यार मेरी माँ से मिला,
सबसे निश्छल प्यार मेरी माँ से मिला,
ऐसा प्यार जिसके शायद मैं काबिल भी नहीं था,
मेरी काबिलियत बिना देखे वो प्यार मुझे मिला,
वो प्यार मुझे उम्र भर तक भर देने के लिए काफ़ी है,
अब उस प्यार कि ना किसी से उम्मीद है,
ना चाहत,
और शायद ही मैं वो प्यार किसी को दे पाऊं,
असम्भव सा लगता है,
शायद ही कोई वो प्यार मुझे दे पाए,
असम्भव सा लगता है,
ख़ैर जाने दो।