दुःख अजब साथी है
दुःख अजब साथी है
दुःख अजब साथी है,
दुत्कारने से भी नहीं जाता,
मैंने दुख के मुंह पर दरवाज़ा दे मारा,
वो दूर जाके अकेले बैठ गया,
ख़ुशी आयी,
बड़ी मुश्किलों से,
बड़ी मिन्नतों से,
आयी तोह लगे अब गयी,
तब गयी,
मैं बंध गया,
लेकिन मैं तो आज़ादी में विश्वास रखता हूँ,
अकेले छोड़ दिए जाने का दुःख जनता हूँ,
मैं उठा,
और दुःख के पास जा बैठा,
ख़ुशी की चुगलियां की,
दुःख गले आ लगा,
और मैं रो बैठा।