किनारा
किनारा
किनारा ******* किनारा करने की वजह का मूल्यांकन जरुरी है, या किनारा करने की सिर्फ मजबूरी है, जो भी है, आजकल रिश्तों में बढ़ रही दूरी है। अपने अपनों से किनारा कर रहे हैं, बेवजह के आरोप लगा खुद को सही बता रहे हैं, पर कौन समझाए हमारी सोच को? जो हम अपने माता-पिता से भी किनारा कर रहे हैं, अपनों को ही अपना दुश्मन मान लें रहे हैं। रिश्तों में औपचारिकताओं का बोलबाला बढ़ रहा है, और तो और मानव मशीन बनता जा रहा है, अपने और अपनों की बात तो छोड़िए वो तो अपने आप से भी किनारा कर रहा है। संवेदनाओं को ढकेल कर किनारे कर रहा है, प्रतिस्पर्धा में अपने हित और भविष्य को भी ताक पर रखने को आतुर हो रहा है, आधुनिकता के इस दौर में मानव तकनीक की मशीन बनने की ओर स्वयं ही बढ़ रहा है। मानव ही मानव को दफन कर रहा है परिवार समाज से किनारा कर रहा है, इस चक्कर में उल्टे सीधे तर्क दे रहा है अपने आपमें से ही उलझता जा रहा है, ऐसा लगता है कि बुद्धि विवेक से हीन हो रहा है। सुधीर श्रीवास्तव
