‘अकेले नहीं हैं हम,मानसिक स्वास्थ्य पर चुप्पी को आओ मिलकर करें कम’
‘अकेले नहीं हैं हम,मानसिक स्वास्थ्य पर चुप्पी को आओ मिलकर करें कम’
यूँ तो ज़िंदगी में बहुत है ग़म,
पर इसका अर्थ यह तो नहीं,
अपने में ही खो जाएँ हम ।
हमें औरों की भी करनी होगी ज़रा फिक्र,
आपस में करें, हम उनका भी तो ज़िक्र।
क्योंकि नहीं हैं ये विशेष लोग किसी से कम,
फिर क्यों नहीं खुलकर बातें करते इनसे हम।
क्यों लगता है सभी को इन लोगों से डर?
कुछ नेक काम हे मनुष्य ! अब तो कर।
आखिरकार मानव-जाति के ये भी तो हैं नर !!
हमें करनी होगी पूरे तौर पर जाँच,
कि इनके जीवन पर आए न कोई आँच।
हो हमें भी इनके कष्टों का आभास,
क्योंकि इन लोगों को भी तो होगी
अपने जीवन से कुछ आस।
करना होगा हमें दूर इनके जीवन से संत्रास-
ध्यान रखना होगा कि कोई न करे इन्हें तंग,
इनके प्रति हो रहे अत्याचार को
आओ मिलकर करें हम भंग।
करना होगा हमें इन लोगों पर पूर्ण विश्वास,
क्योंकि जीवन जीने के लिए ये
लोग भी तो लेते हैं श्वास !!
कोई न कर पाए ज़रा-सा भी दुराचार,
जहाँ देखें थोड़ा -भी होता अत्याचार।
उन्हें दिलाएँ परम -पिता परमेश्वर की याद
ना कर सकें यदि कुछ तो कम-से-कम
वे करें ईश्वर से फरियाद---
कि इन लोगों को भी दें वह जीने की शक्ति,
यही होगी ईश्वर के प्रति हमारी सच्ची भक्ति।
इन लोगों को अपने सब कष्टों से जूझना होगा,
एक विश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ना होगा।
किसी-न-किसी कार्य में रखना होगा इन्हें व्यस्त,
ताकि इनका जीवन न हो सकेगा अस्त-व्यस्त।
रहेंगे फिर ये अपने जीवन-क्रम में सदे
ेव मस्त !!
न होगा इनकी आशाओं का कभी सूर्य अस्त!!
इसलिए देना होगा हमें अपनी सोच को विराम,
ताकि इन लोगों को भी मिले थोड़ा-सा विश्राम।
अगर हम नहीं दे सकते इन्हें आसरा,
तो सोचें कि आखिर कैसे बन सकते हैं हम इनका सहारा--
समझें इन्हें हम ईश्वर की खास कृति,
फिर चाहें कैसा- भी हो इनका रूप-रंग या आकृति।
क्योंकि ईश्वर ने बनाया है इन्हें निश्छल,
बस थोड़े-से हैं ये लोग कुछ चंचल।
इनके साथ भी हम थोड़ा खेलें,
इनसे भी मेल-जोल कर हम प्यार -से मिलें।
अपना जीवन जीते हुए हम इनकी ओर मुड़ें,
और अपना दिल प्यार- से भरकर इनसे जुड़ें।
क्योंकि नहीं है हालातों के लिए इनकी कोई गलती,
फिर समाज में क्यों नहीं इनकी बात है बनती?
एक ‘व्यक्ति’ की तरह क्यों नहीं होती इनकी गिनती....
कितने ही संस्थान इन लोगों का कर रहे उत्थान ,
ताकि जी सकें ये लोग भी जीवन में भर कर शान ।
शायद समझ चुके हैं, वे इस जीवन का मर्म,
तभी जुटे हुए हैं , कर रहे हैं यह महान कर्म ।
क्योंकि 'मानसिक स्वास्थ्य'नहीं है
कुछ ऐसा जो हो अपने हाथ में,
तब ऐसे में क्या जरूरी है कि कोई न हो इनके साथ में ?
यदि हमने इनमें से किसी एक चेहरे को भी हँसा दिया,
तो मानो हमने अपने जीवन में से
कुछ दुखों को यूँ ही भगा दिया ।
ईश्वर भी तो देख रहा हमारा यह मानवीय कृत्य,
इसलिए कुछ ऐसा करें कि इनकी भलाई में रह जाए न कोई कमी-
परम पिता परमेश्वर भी देखे हमें इनके साथ,लिए आँखों में नमी ।