जिंदगी का फलसफा
जिंदगी का फलसफा
इस मिट्टी ने हमें हमारा
नाम दिया।
दिल खोल के जीने का
इंतज़ाम किया है।
दुनिया की फरेबी को
दुनिया ही जाने "सोमू"
हमने तो एक दौर अपने
नाम किया है
दुनिया के आँगन में मोहब्बत
का जाम पिया है।
मेरे देश की मिट्टी से
मेरा नाम हुआ है।
ढल गई जिंदगी पानी सी।
लोगों की उंगली उठने से।
जग ने मुझ को धिक्कार दिया।
तूफान बना मैं शब्दों से।
जग की बातें जग ही जाने।
मैं अपना राग सुनाता हूं।
मैं इस नफरत की दुनिया में
दिल का आलाप सुनाता हूँ।
गुमराह हुए वो राहों से।
जिनके मन में कोई लक्ष्य नहीं।
जो मकसद लेकर बढ़े चले।
उनसे ज्यादा कोई दक्ष नहीं।
यूँ नाम न बनते घर बैठे।
आलस को छोड़ना पड़ता है।
जो मान सत्य यह बात "सोमू"
वो राही राह में बढ़ता है।
खैरात में कुछ मिलता न यहां।
मेहनत की रोटी सब खाते।
डटकर मुकाबला करते हम।
मैदान छोड़कर न जाते।
छाले पड़ आये हाथों में
घावों से गहरा नाता है।
अब ठान लिया बस चलना है
फूलों में मुझ को छांटा है।
वीरान भी न था बर्बाद
भी न था।
गाँव में वो आदमी
जल्लाद भी न था।
दम तो निकल गया
माँ बाप का तब ही।
जब से पता चला वो
औलाद भी न था।
शहरों ने हमारे चरागे
बुझा दिए।
वरना हमें भी रहबरों वे
नाज बहुत था।
रौनक चली गई, उस
घर की देरी की।
जब से सुना है बेटा
उसका शहर को गया।
पीपल के पेड़ वो, वो
आम की बगिया।
अहसास दिलाती थीं
गाँवों की वो गलियाँ।
सूरज की वो किरण,
बहती हुई हवा।
सब याद है मुझ को,
बच्चा हुआ तो क्या।
बस यही इल्तज़ा है
मेरे देश के लोगों।
मेरे गाँव को गाँव रहने दो
इसमें है हर्ज क्या।
जो अपने प्यारे नाते हैं।
पहले पीछे मुड़ जाते हैं।
काया भी साथ नहीं देती।
रोने के बादल छाते हैं।
पौरुषता सारी मर जाती।
जब काल व्यक्ति का आता है।
घुट घुट कर साँसे थम जाती।
और सब्र कहीं खो जाता है।
बस एक चीज रह जाती है
वो मानव की है मानवता।
वो ही मनुष्य वो मानव है।
जो आया देश के काम सदा।
बुद्धि विनाश के और बड़े।
विपरीत काल जब आता है।
है नाश जगत का अटल सत्य,
बस नेक काम रह जाता है।
उस नेक काम के ही कारण,
वो जग में नाम कमाता है
हम क्यों रोये सत काम करें
ये नाश, सभी का आता है।
सोते हुए देखे थे,सपने
जो कई हज़ार।
सच्चे नहीं होते हैं ये
सब खोखले हैं यार।
हर स्वप्न का सच है,
सबकी है कहानी।
किन्हीं की नींद बड़ा दी,
किसी की नींद उड़ा दी।
सपनों की उमर है,
अपने हैं तरीके।
उन पर शिनख्त होकर,
छोड़ो नहीं मौके।
सत्य है जिस स्वप्न में,
वह स्वप्न न वह जिंदगी है।
नींद में बस कल्पना वह,
हकीक़त में जिंदगी है।
ये स्वप्न है कि परिदें,
बहती फिजाओं में उड़े।
सब साथ में आएं कभी,
सब साथ होकर ही रहें
उड़ने का ख़्वाब है तो
मंज़िल की आरजू।
मुद्दतों बाद मैं हुआ
सपनों से रूबरू।
बस इल्तज़ा है ये मेरी
सपनों के बाग में।
सच्चाई हो, संघर्ष हो,
इंसा के ख़्वाब में।