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Mamta Singh Devaa

Inspirational

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Mamta Singh Devaa

Inspirational

मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?

मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?

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जो बात कहने से भी डरते हैं 

 सब वो बात सबने कही

वो कहने से नही डरे 

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


जो तिरस्कार दिया अपनों ने 

जिसकी कल्पना नही की सपने में

वो देने में नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


शर्म बेच बेशर्म हुये 

धर्म के नाम पर अधर्म हुये

वो अधर्मी तब भी नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


सदाचार का झूठा पाठ पढ़ा 

मनमानी करते रहे निरंतर

वो अनाचार से नही डरे 

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


हर रिश्ते में मर्यादा होती है 

उन रिश्तों को तोड़ कर

वो अमर्यादित होने से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


सारे गुनाह गलत होते हैं

फिर भी सब करते रहे

वो गुनाह करने से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


डर का डर नही जिनको

कुकर्म जी भर करते रहे 

वो उस डर से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


निडर हो कर झूठ बोलें

सच को कदमों तले डालें

वो झूठ बोलने से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


सबने अपनी हद पार की

आँखों की शर्म बेच दी

वो हद पार करने से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


इसलिए की वो डराते हैं

अपने झूठ का भय दिखाते हैं

वो डराने से नही डरे

तो मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


क्यों डरूं क्यों डरूं 

तुम्ही बताओ मैं क्यों डरूं 

मैं सच लिखने से क्यों डरूं 

मैं सच लिखने से क्यों डरूं ?


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