हुंकारती पृथ्वी
हुंकारती पृथ्वी
दोहन दोहन और दोहन
खाली होती धरा
पेट मानव का
न भरा।
आँखें मूंद
धृतराष्ट्र बना
केवल अपना स्वार्थ
सिद्ध करने में अड़ा।
प्रकृति के असीम उपकार
कृतध्न मानव
मचा रहा हाहाकार
प्रलय और क्या होगी ?
हुंकारती प्रकृति
संभल जा सत्य को समझ
जीवन का है व्यापक अर्थ ..
अब और न उजाड़
कुछ नए पत्ते उगा
कुछ नयी जड़ें फैला
कुछ अमरुद कुछ आम
दूसरों के लिए भी उगा
जीवन सफल होगा
कृत -कृत होगी
तेरी धरती माँ ... I