इंतजार
इंतजार
शाम के छः बजे ..
खिड़की के पास ..
जहाँ से दिखता ..
डहलिया हँसता हुआ ..
वो खिड़की ..
वो डहलियां ..
वो ठंडी होती चाय
और .. मैं
ठंडी आहें भरती ..
इंतजार तेरा ही करती ..
भोर से शाम होती ..
ये खिड़की, अब बंद नहीं होती ।
शाम के छः बजे ..
खिड़की के पास ..
जहाँ से दिखता ..
डहलिया हँसता हुआ ..
वो खिड़की ..
वो डहलियां ..
वो ठंडी होती चाय
और .. मैं
ठंडी आहें भरती ..
इंतजार तेरा ही करती ..
भोर से शाम होती ..
ये खिड़की, अब बंद नहीं होती ।