शून्य
शून्य
एकाएक
शून्य बहुत करीबी हो गया
बसेरा दिलो दिमाग पर इसका ही हो गया
इच्छाएं हुयी शून्य
जिजीविषा भी हो गयी है शून्य
सब यही धरा रह जाना
तो होना न होना शून्य
मन की चेतना शून्य
शरीर का ताप भी होने लगा शून्य
अजब खालीपन
शून्य का
विस्मृति का यह दौर भी
भाने लगा
आंखों के आगे छाया शून्य
माँ , अंधेरे में हाथ तेरा था शून्य
नवजात सा निर्बल
औ असहाय
गम नहीं अब
ब्रहाण्ड के शून्य में मिल जाऊं
कहीं दिखूं नहीं
सुकून है जो हो जाऊँ शून्य ।