STORYMIRROR

VEENU AHUJA

Abstract

4  

VEENU AHUJA

Abstract

शून्य

शून्य

1 min
266

एकाएक

शून्य बहुत करीबी हो गया


बसेरा दिलो दिमाग पर इसका ही हो गया


इच्छाएं हुयी शून्य

जिजीविषा भी हो गयी है शून्य


सब यही धरा रह जाना

तो होना न होना शून्य


मन की चेतना शून्य

शरीर का ताप भी होने लगा शून्य


अजब खालीपन

शून्य का


विस्मृति का यह दौर भी

भाने लगा


आंखों के आगे छाया शून्य

माँ , अंधेरे में हाथ तेरा था शून्य


नवजात सा निर्बल

औ असहाय


गम नहीं अब

ब्रहाण्ड के शून्य में मिल जाऊं


कहीं दिखूं नहीं

सुकून है जो हो जाऊँ शून्य ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract