बहना मैं भूल जाता हूँ तुमसे
बहना मैं भूल जाता हूँ तुमसे
क्या लिखूँ
कि मेरे सूने से आँगन में एक
नन्ही सी परी खेलती है।
दिल को सुकून देती है मेरे सारे
राज खोलती है।
वो उसका खिलखिलाना,
बातें बनाना।
मुझसे झगड़ना, फिर रूठ जाना
मचलना, गिड़गिड़ाना और फिर
आँखों से आँसू बहाना, याद है मुझे
क्या कहूँ
चिड़ियों की चहचहाहट जैसी वो
आँगन को गुंजाती है।
मेरा सर गोद मे रखकर अपनी,
माँ की लोरियाँ सुनाती है।
थके हारे से कंधो का, वो ही
साहस बढ़ाती है।
मेरे गहरे से जख्मों पर, प्यार
मलहम लगाती है।
वो बार बार मुझसे महंगी चीजें
माँगती है।
शायद कोई खिलौना, कीमती
घड़ी माँगती है, मगर फिर
सम्हल जाती है, समझ जाती है
और मुझे लगता है कितनी
समझदार हो गईं है
दर्द छुपाते छुपाते कितनी
बड़ी हो गईं है।
वो हँसना चाहती है, मेरे साथ
खेलना चाहती है।
भाई से बातें करना चाहती है
मुझसे लड़ना चाहती है।
वो मेरे पास नहीं हैं मगर अपने
होने का अहसास दिलाती है।
मेरे कानों में कहकर भैया मैं हूँ न
मेरा हौसला बढ़ाती है, मेरे जीवन
का सरगम वो, बताना भूल जाता हूँ।
मैं उनसे प्यार करता हूँ जताना
भूल जाता हूँ।
कई सालों से राखी पर घर नहीं आया
इसी बात का गुस्सा उनके अभी
तक सर पे बैठा है
उन्हें मजबूरियां बता कर सुलह
करता हूँ घर जाकर.
समझ जाती हैं जैसे माँ हों,
गले लगाती है मुस्कुरा कर ।
सुनहरी धूप के जैसी, मलम का
साया होती है।
किसी मासूम बच्चे की, जैसे कोई
आया होती है।
बांधने एक राखी वो, कलाई
खींच लेती है।
मेरे सीने से लगकर वो ,
ये आँखे मीच लेती हैं।
कहता हूँ मेरी शान हैं बहना।
नन्ही सी मेरी जान हैं बहना।
ग़म में भी ख़ुशियाँ दे जाए।
ऐसी तू मेहमान है बहना।
बहना,मैं भूल जाता हूँ तुमसे कहना।
तुम मेरे आस पास यूँ ही रहना, बहना...