बेवफ़ा कौन...? मैं या तुम
बेवफ़ा कौन...? मैं या तुम
वो मानते रहे हमें कि हम बेवफ़ा निकले।
वो समझने लगे हमें कि हम दगा कर बैठे।
मजबूरियाँ हालात न जानकर उन्होंने
कह दिया की तुम धोखेबाज़ निकले।
हमने उनसे कहा
बातों ही बातों में वो बात बढ़ गई।
हमें तुम्हें जो न मुनासिब वो मुलाकात
बढ़ गई।
मगर अफ़सोस नहीं मुझ बेजुबाँ को।
बस दर्द से भरी एक और रात बढ़ गई।
सोचा कभी हमें वो नज़र आयेंगे।
मगर..
अब उनकी नज़रे बदल गईं और
उन नज़रों के नज़ारे बदल गये।
सोचा छोड़ो यार, भूलना सीख जाओ
हम भी अब गिरकर, उठकर बढ़
चुके हैं।
तेरी मोहब्बत से रुख्सत हो कुछ
बन चुके है।
माना कि आपके काबिल नहीं हुए हम।
मगर किसी की नज़रों में हम अब
जम चुके हैं।
ये प्यार नसीहत भी दे गया और
तजुर्बा भी।
मोहब्बत छोड़ दी हमने मगर वफ़ा
अब भी करते हैं।
कबूल की अपनी ग़लती और माफ़
किया तुम्हें।
क्योंकि तुझसे बिछड़ के हम भी
शायर हो गये।
बस दुआ है जहां भी रहें आप
खुश रहें
हमारा क्या है हम तो मुसाफिर हैं
राह के।
तेरे मिलने से पहले सोमिल थे।
और आजकल सोमू हो गये।