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Namrata Saran

Romance

4  

Namrata Saran

Romance

ये सिलसिला

ये सिलसिला

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बेशक

तड़पता रहा है तू भी

ये जानती हूँ मैं,

अश्कों के सुनामी कितने

देर रात तकिए के गिलाफ़ पर,

जज़्ब करता है तू भी

ये जानती हूँ मैं,

कसकते दिल पर 

अपनी हथेलियों की हरारत मे

मुझे ही तो

महसूस करता रहा है तू भी

ये जानती हूँ मैं,

ख़ामोशी के इस आलम मे

जुदाई के इस मौसम मे

हर तन्हा लम्हे मे

पल पल मुझसे ही

बात करता रहा है तू भी

ये जानती हूँ मैं,

ये तेरा यूं यकबयक आकर

मुझको बाहों में भरना

जी भरकर मुझको प्यार करना

बिलखकर मेरा, तेरे दामन मे पिघलना

जुदाई की स्याह रातों में

यही ख़्वाब बुनता है तू भी

ये जानती हूँ मैं,

अब रुबरू हैं हम तुम

थरथराते लबों पे सवाल बेहिसाब

लबों मे ही उलझे जवाब बेहिसाब

अब सवाल ग़ुम, जवाब ग़ुम

दो बुत मचल रहे 

आतिशे इश्क़ मे, 

न रोको , न टोको

ये मिलन है लंबी जुदाई के बाद

अब रात के आगोश में 

पिघल रहा है चाँद

इश्क़ की तपिश से

सूरज सा जल रहा है चाँद,

अब जुदा न हों कभी

ये सिलसिला चलता रहे

न रहें मुंतज़िर वक्त के

ये नूर यूं ही बरसता रहे

यही सोच रहे हो तुम

ये जानती हूँ मैं।



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