कुछ कहानी, कुछ फ़साने
कुछ कहानी, कुछ फ़साने
जानें कब, क्या हुआ, कुछ ख़बर ना लगी
दिन में सपनों का घर हम बनाने लगे
जब हुआ दिल का, दिल के, दिल से सामना
कुछ कहानी बनी, कुछ फ़साने बने।
डरता था मैं बहुत अंजाम-ए-इश्क़ से
पर मैं लाचार था दिल के पैगाम से
लड़खड़ाते कदम, मन बदहवास था
बढ़ चले हम, जहाँ मेरा आगाज़ था
उनकी ज़ालिम हँसी, उनकी क़ातिल अदा
उनके काले नयन में था जादू भरा
आँखें ऐसी लड़ी, दास्ताँ बन गई
हम किताबों में अब ढूँढे जाने लगे
जानें कब, क्या हुआ, कुछ ख़बर ना लगी।
था मैं आवारा, अनजाना था यह शहर
वो थी मशहूर दिल की फ़िज़ा में मगर
हो ना जाए कहीं इश्क़ रुस
वा यहाँ
अपने किस्से अब होने लगे हर ज़ुबाँ
हमने दिल से कहा, लौट चल अपने घर
दिल ने आवाज़ दिया, थोड़ा सा कर सबर
हादसा फिर मेरे साथ कुछ यूँ हुआ
वो संवरने लगे, हम भी सजने लगे
जानें कब, क्या हुआ, कुछ ख़बर ना लगी।
इस शहर का असर कुछ हुआ यूँ मुझे
लफ़्ज़ गुमाँ से भरा था मेरे गीत का
चाँद-तारों से उनकी करूँ जोड़ क्यूँ
मेरी महबूबा है इस जहाँ से जुदा
संगमरमर बदन, वो है नाज़ुक कली
हमने घर वो बनाए, जहाँ वो पली
हो गए रंजन मशहूर अब इस क़दर
ख़ुद खुदा भी मेरे घर पर आने लगे
जानें कब, क्या हुआ, कुछ ख़बर ना लगी।