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R. R. Jha (RANJAN)

Abstract Romance

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R. R. Jha (RANJAN)

Abstract Romance

ख़्वाब

ख़्वाब

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दौर चलने लगा, पीने का, पिलाने का

उनके पहलू में बैठकर जीने का

दौर चलने लगा।


मैंने उनसे कहा हाल-ए-दिल लिख के ख़त

उसने मुझसे कहा मन की जद्दोजहद

डर मगर था इस ज़ालिम-ज़माने का

दौर चलने लगा, छुपने का, छुपाने का

उनके पहलू में बैठकर जीने का

दौर चलने लगा।


उनके आग़ोश में थी कशिश इस कदर

चुपके-चुपके पहुँच मैं गया उनके घर

हाल था जैसे मेरा जुआरी का

दौर चलने लगा, रूठने का, मनाने का

उनके पहलू में बैठकर जीने का

दौर चलने लगा।


रास आया नहीं इस जहाँ को हमारा प्यार

कर रहे हैं पहरेदारी छोड़ कर घर बार

कर बैठे बग़ावत हम माँ-बाप के

दौर चलने लगा, बाग़ी बनने का, बनाने का

उनके पहलू में बैठकर जीने का

दौर चलने लगा।


ये हुआ क्या गज़ब, हम सोचते रह गए

हम जहाँ थे, वहीं हैं, वहीं रह गए

खोल आँखों से पलड़ा दिया ख़्वाब का

दौर चलने लगा, तोड़ने का, जोड़ने का

उनके पहलू में बैठकर जीने का

दौर चलने लगा।


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