चाँदनी रात में, तारों के साथ में
तट का लेकर सहारा नदी संग चला
साँस उफनती हुई लहरों की तरह
कल्पनाओं के रथ पर सवार हो चला
सहमें-सहमें मगर मन में ले प्रीत को
ज़ुल्फ़ों के रास्ते हो मुसाफ़िर चला
चाँदनी रात में।
कुछ कदम ही बढ़े थे कि पथ पर तभी
एक प्यासा पथिक हमसफ़र बन गया
उनके करुणामय कण्ठ से वो करुण
सुनके स्वर, प्रेम का मन द्रवित हो गया
आँखें मिलकर सञ्जोने लगे स्वप्न कुछ
दिल था आवारा, दिल की गली वो चला
चाँदनी रात में।
उनका नाज़ुक बदन लेता अंगड़ाईयाँ
छाँव संग धूप ज्यों करती अठखेलियाँ
उनके नीले नयन में शरारत थी पर
उनके लब पर हया की भी थी दास्ताँ
उनके दिल ने कहा, मेरे दिल ने सुना
मन से मन मिला, प्रेम पथ मन चला
चाँदनी रात में।