आज चर्चा सरेआम है
आज चर्चा सरेआम है
आज चर्चा सरेआम है
जो है क़ातिल मेरा
वो ही मुंसिफ़-ए-आम है
आज चर्चा सरेआम हैं।
सबने मेरे लिए गुहार-ए-इंसाफ़ किया
उसने मुझको ही साज़िश मेरा कह दिया
कैसे उनकी पैरवी पर यकीं हम करें?
जिसने जिरह के बग़ैर फ़ैसला कर दिया
अब सियासत का भी मुझपर इल्जाम है
आज चर्चा सरेआम हैं।
मैंने उनके लिए गुनाह-ए-अज़ीम किया
उसने मेरे लिए इबादत भी ना किया
और ख़िताब-ए-बुज़दिली से नवाज़ा मुझे
इतनी सी भी रहम, बेरहम ने ना किया
अब जुर्म के भी ज़ुबाँ पर मेरा नाम है
आज चर्चा सरेआम हैं।
है ख़बर तेरे निज़ाम के भी सरकार को
सारे तंत्र लगे हैं बचाने में गुनहगार को
फिर है इंसाफ़ की उम्मीद बेईमानी यहाँ
जब वज़ीर ने ही कह दिया जहालत दलील को
अब दरबार-ए-इंसाफ़पर निगाहें आम हैं
आज चर्चा सरेआम हैं।
