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Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

मैं सोना चाहती हूँ

मैं सोना चाहती हूँ

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कैसे बताऊँ कितना सन्नाटा है मेरे दिल की अंजुमन में 

तेरे बोल की गूँज को ढूँढती हूँ रात के हर पहर की परतों में 


साथ बिताए लम्हों की आहट तलाशती हूँ ये मंज़र बहुत दर्दनाक है 

घंटों तुम्हारी बातों में खोते नींद कोसों दूर चली जाती थी 


आज शमा बदल गया है तुम्हारी यादों के

बिहड़ जंगलों में रातें लंबी लगती है 

नम आँखें तुम्हारी पागलों सी हरकत को ढूँढती है 


कान तरसते हैं तुम्हारी हंसी की सारंगी सी तान सुनने

वो तुम्हारा गीत गुनगुनाते मेरे चेहरे को तकना 


मेरे जाने पर सुन ना रुक ना कहते टोकना क्या क्या याद करूँ

अब तुम मेरे कहाँ... फिर क्यूँ इतना याद आते हो

रोक लो ना अपनी यादों को मैैं सोना चाहती हूूँ। 


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