चलो यह भी कर ले
चलो यह भी कर ले
जमाने को समझाना आसान रहा नहीं है अब
तो क्यों ना खुद को ही समझा लिया जाए
नींद उड़ सी गई है इस बेजान से शहर से
क्यों ना बरगद के नीचे चादर बिछा ली जाए
क्या मिला हमे बेमतलब की शह और मात से
चलो शतरंज की इस बिसात को समेट लिए जाए
मंदिर मस्जिद के मसले कुछ पेचीदा हो गए
क्यों ना किसी भूखे को रोटी खिला दी जाए
उम्र निकल जाएगी पुलिस, कोर्ट कचेहरी में
फिर क्यों ना फिर से चौपाल सजा दी जाए
दिलो से दिलो का मिलना जो हो गया मुश्किल
क्यों ना हाथो से हाथ ही मिला लिया जाए
कुछ ठंडी पड़ है चमक अब अपनी दोस्ती की
चाय फिर सड़क किनारे की टपरी से पी जाए
रंगो की रंगत अब होने लगी है कुछ फीकी
क्यों ना होली पे फिर हुड़दंग मचाया जाए।