तुम चले जाओगे
तुम चले जाओगे
जानती हूँ तुम चले ही जाओगे,
जैसे चली जाती है ऋतुएँ,
पर कुछ रह भी जाओगे,
जैसे रह जाती है बारिश की कुछ बूंद।
कभी हवा में तो कभी,
मिटटी में नमी बनकर,
छोड़ जाओगे इस इमारत को,
ढहता, बंजर बनता,
और कुछ टूटी प्रतिमाओ-सा,
पर रह भी जाओगे।
उनमें ही कही चंद्रमा की,
उजली किरण-सा,
मोड़ लोगे रास्ते, किसी सुनसान सड़क पर,
और खो जाओगे बढ़कर भीड़ में,
पर वही थोड़े रह जाओगे।
मेरे पाज़ेब में लगी घुंगरू के झंकार में,
तो कभी रिक्शा के टिन-टिनाती आवाज़ में,
तोड़ दोगे यूँ ही बेनाम से रिश्ते को,
और समेट ले जाओगे यादों के कम्बल,
तो हलका-सा यूँ रह भी जाओगे।
सुबह की रखी चाय की मिठास में,
और आधे खाली बोतल के प्यास में,
हाँ ये अटल सत्य है,
तुम चले ही जाओगे।
एक दिन हर दिन के लिए,
पर सत्य ये भी है,
तुम रह जाओगे यही कही,
मुझमें साँस बनकर।
और प्रार्थना में उठे हर बार मेरी हाथों में,
कविता मैं लिखा करुँगी, पर,
गुनगुनाओगे तुम मुझमें गीत बनकर।