मैं अगर इंसान होता
मैं अगर इंसान होता
मैं अगर इंसान होता
हंसता, बोलता, खिलखिलाता
लोगो के बीच, लोगों सा होता
पर मैं
इतिहास के मलबों में दबा अतीत का प्रेत हूं
आज भी खाली कमरों में, दीवारों से सिर पटकता फिरता हूं
किताबों में छिपे किरदारों को इर्द गिर्द पाता,
किसी कोने से ठिठोली की आवाज़ पर मुस्कुराता,
किसी पन्ने को सीने से लगाए सो जाता हूं
मैं अगर इंसान होता
रोता, सिसकता, शिकायते करता
भीड़ में, भीड़ सा जुमले कसता
पर मैं चक्की से छिटककर दूर गिरा गेहूं का दाना हूं
जो खुशी खुशी गया तो पीसने को था
पर अब दूर पड़ा, मुंह बाय
तिरस्कृत होने को विवश है
थाली में परोसे जाने की भी अपनी किस्मत है
अनगिनत लातों से, देशी - विदेशी जूतों से
अब बस पिट - पिटाता हूं।