युद्ध अवश्यम्भावी तो नहीं
युद्ध अवश्यम्भावी तो नहीं
जिन्हें कुछ छिपाना है
जिन्हें कुछ छीनकर पाना है
जिनके हृदय विषाद है
जिन्हें लूटना याद है
जिनके मानस में शोक है
रक्त की पिपासा ही उनका शौक है
मानवता के खिलाफ, पीड़ा क्रुद्ध की है
यही तो वजह युद्ध की है
जिन्हें तरसाना है, तड़पाना है
जो खुद अधूरे है, मानते पूरे है
उन्हें स्व से ज्यादा अनुराग है
दुख में आकर्षण पराग है
उन्हीं में तड़प अशुद्ध की है
यही तो वजह युद्ध की है।
जिनका रुख पाने का
भय सताता खोने का
हार से हारने की हसरत है
अस्तित्व बचाने की कसरत है
जीतने की कामना का राग है
रक्त अन्वेषण विशुद्ध की है
यही तो वजह युद्ध की है
यह न सोचो शांति में शांति है
अहिंसा, प्रेम भी तो क्रांति है
बात है सकारात्मक बदलाव की
युद्ध परिस्थिति नहीं स्वभाव की
हारने वाले भी हारते है
जीतने वाले भी बाग उजड़ते है
फल विनास का अट्टहास भर
पीड़ा में मरना है, बचे तो भड़ास भर
युद्ध अवश्यम्भावी तो नहीं
आदमीयत का पनपना काफी तो नहीं
हमारी मंशा सही के विरुद्ध की
यही तो वजह युद्ध की है ...