आज करवा चौथ है
आज करवा चौथ है
वह फ़िर जलाती है,
दिल की रोशनी के दरम्यां,
उसकी लम्बी उम्र का दीया ।
कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द,
निकालती है झोली से,
टांक लेती है माथे पे बिन्दियाँ,
कलाइयों पे मेहन्दी,
बदन पे नोलखा हार ।
घर के हर हिस्से को,
करीने से सजाती है,
फ़िर...गौर से देखती है ।
शायद कोई और,
जगह मिल जाए,
जहाँ बिछ सकें,
कुछ मोहब्बत के फूल ।
खनकते खूबसूरत लफ्जों में,
दीया डगमगाने लगता है,
हवा दर्द और अपमान से,
काँपने लगती है ।
आसमां फ़िर,
दो टुकडों में बंट जाता है,
वह जला देती है सारे ख्वाब,
रोटी के साथ जलते तवे पर ।
छौंक देती है सारे ज़ज्बात,
कढ़ाही के गर्म तेल में,
मोहब्बत जब दरवाजे पे,
दस्तक देती है,
वह चढा देती है सांकल ।
दिनभर की कश्मकश के बाद,
रात जब कमरे में कदम रखती है,
वह बिस्तर पर औंधी पड़ी,
मन की तहों को,
कुरेदने लगती है ।
बहुत गहरे में छिपी,
इक पुरानी तस्वीर,
उभर कर सामने आती है ।
वह उसे बड़े जतन से,
झाड़ती है, पोंछती है,
धीरे-धीरे नक्श उभरते हैं,
रोमानियत के कई हसीं पल,
बदन में साँस लेने लगते हैं ।
वह धीमें से,
रख देती है अपने तप्त होंठ,
उसके लबों पे और कहती है,
आज करवा चौथ है जान ।
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद,
हौले-हौले मुस्कुराने लगता है,
कहता है ये ही तो है निश्चल प्रेम ।