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Kapil Jain

Drama Romance

2.0  

Kapil Jain

Drama Romance

आज करवा चौथ है

आज करवा चौथ है

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वह फ़िर जलाती है,

दिल की रोशनी के दरम्यां,

उसकी लम्बी उम्र का दीया ।


कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द,

निकालती है झोली से,

टांक लेती है माथे पे बिन्दियाँ,

कलाइयों पे मेहन्दी,

बदन पे नोलखा हार ।


घर के हर हिस्से को,

करीने से सजाती है,

फ़िर...गौर से देखती है ।


शायद कोई और,

जगह मिल जाए,

जहाँ बिछ सकें,

कुछ मोहब्बत के फूल ।


खनकते खूबसूरत लफ्जों में,

दीया डगमगाने लगता है,

हवा दर्द और अपमान से,

काँपने लगती है ।


आसमां फ़िर,

दो टुकडों में बंट जाता है,

वह जला देती है सारे ख्वाब,

रोटी के साथ जलते तवे पर ।


छौंक देती है सारे ज़ज्बात,

कढ़ाही के गर्म तेल में,

मोहब्बत जब दरवाजे पे,

दस्तक देती है,

वह चढा देती है सांकल ।


दिनभर की कश्मकश के बाद,

रात जब कमरे में कदम रखती है,

वह बिस्तर पर औंधी पड़ी,

मन की तहों को,

कुरेदने लगती है ।


बहुत गहरे में छिपी,

इक पुरानी तस्वीर,

उभर कर सामने आती है ।


वह उसे बड़े जतन से,

झाड़ती है, पोंछती है,

धीरे-धीरे नक्श उभरते हैं,

रोमानियत के कई हसीं पल,

बदन में साँस लेने लगते हैं ।


वह धीमें से,

रख देती है अपने तप्त होंठ,

उसके लबों पे और कहती है,

आज करवा चौथ है जान ।


खिड़की से झांकता चौथ का चाँद,

हौले-हौले मुस्कुराने लगता है,

कहता है ये ही तो है निश्चल प्रेम ।


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