निगाहों को इक खत
निगाहों को इक खत


तुम्हारी निगाहों को,
इक ख़त लिख रहा हूँ मैं...
तुम्हारे होटों की वो मुस्कराहटे,
मैंने मिस कर दी....
जिनकी वजह मैं था.खुश.
लेकिन
मैंने उन्हें महसूस किया है...
वो पल जब पहली बार,
मेरे किसी ख्याल पर,
तु मुस्कराएई थी....
वो पहली बार जब...
तुम्हारी बातो बातो में,
कुछ लाइनें लिख कर दी..
उन्हें पढ़ कर जो,
तुम्हारे आँखों मे चमक थी,
वो भी मैंने महसूस की थी....
तब भी चुपके से मुस्कराए थे तुम..
जब मेरी श
रारतों पर..
मुझ पर गुस्सा कर,
अकेले में उन्ही पर मुस्कराए तुम..
वो भी महसूस की है मैंने...
मेरी लिखी पंक्तियों को,
अकेले में बार-बार पढ़ कर,
तुम्हे इतराते...मुस्कराते....
महसूस किया है मैंने....
मुझे ख़बर है कि..
मेरे इस मुस्कराहटो के,
ख़त को पढ़ते ही..
मन ही मन मुस्कराओगी तुम...
मैं देखूं न देखूं..
तुम्हारी मुस्कराहटो महसूस,
तो किया है मैंने....
तुम्हारी निगाहों को,
इक ख़त लिखा है मैंने.....