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Kapil Jain

Romance

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Kapil Jain

Romance

भावना

भावना

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भावों के कोरे कागज़ पर

सूख गये है नयनों के रंग

भावनाओं के उड़ते पाखी

सतरंगी पँखों से आखर

आकर कब लिख जाओगे ?


जी भर भाव बरसे आंगन

भीग न पाया अन्तर्मन

मौन पड़ी है अन्त:स वीणा

भीगे सुर सा भाव संवेदन

किन तारों पे गाओगे ?


मृदु भावना की अनगिनत लहरें

मन के सागर में उफनती

भीगे सुर से भाव संवेदन मे

स्वर लहरी के बन्द दरवाज़े

क्या तुम खोल पाओगे ?


आ जाओ तो स्वप्न लोक में

दोनों ही भर लें उड़ान

होगी भाव भंगिमा झँकृत

व्याकुल मन मे प्रेम पहचान

कब तक तुम ठुकराओगे

अब तो लौट के आओगे


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