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Kapil Jain

Romance

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Kapil Jain

Romance

पहला प्यार

पहला प्यार

1 min
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अक्सर तेरा साया

एक अनजानी धुंध से

चुपचाप चला आता है

और मेरी मन की चादर में

सिलवटे बना जाता है …

मेरे हाथ ,

मेरे दिल की तरह कांपते है ,

जब मैं उन सिलवटों को

अपने भीतर समेटता हूँ …


तेरा साया मुस्कराता है

और मुझे उस जगह छू जाता है

जहाँ तुमने कई बरस पहले

मुझे छुआ था ,

मैं सिहर सिहर जाता हूँ ,

कोई अजनबी बनकर तुम आते हो

और मेरी खामोशी को

आग लगा जाते हो …


तेरा एहसास मेरे चादरों में

धीमे धीमे उतरता है

मैं चादरें तो धो लेता हूँ

पर मन को कैसे धो लूँ

कई जनम जी लेता हूँ

तुझे भुलाने में ,


पर तेरी मुस्कराहट ,

जाने कैसे बहती चली आती है ,

न जाने, मुझ पर कैसी

बेहोशी सी बिछा जाती है …

कोई पीर पैगम्बर

मुझे तेरा पता बता दे ,

कोई माझी ,

तेरे किनारे मुझे ले जाए ,

कोई तुझे फिर मेरी चाह बना दे..

या तो तू यहाँ आजा ,

या मुझे वहां बुला ले....



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