Surendra kumar singh

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Surendra kumar singh

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सीमा

सीमा

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लो आ गयी सीमा। ये वो स्थान है जहाँ से आगे जाना मुमकिन नहीं है। अगर तुम यहाँ से आगे जाना चाहते हो तो आगे की यात्रा तुम्हें अकेले करनी पड़ेगी।

  तुम्हें कैसे पता कि यहाँ जहाँ हम हैं हमारी यात्रा का अंत है। हमारी यात्रा की अंतिम सीमा है।

    आखिर तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य क्या है। आखिर जीवन मिला है तो इसका कोई लक्ष्य होना चाहिये। इसका कोई उद्देश्य होना चाहिये।

   मैंने तो सुना है जीवन एक अनन्त यात्रा है। सदियों से मनुष्य चलता जा रहा है चलता जा रहा है। रुकने का तो उसने नाम ही नहीं लिया है। लेकिन अभी तक उसकी यात्रा करने की जिज्ञासा समाप्त नहीं हुई है।

   आखिर यहाँ के आगे क्या है। कोई दीवाल तो नहीं है। कोई समुन्दर तो नहीं है। फिर आगे जाने में समस्या क्या है।

   बात दिक्कत की नहीं जरूरत की है। जरूरत क्या आगे जाने की। जीवन के लिये, जीवन के पाथेय के लिऐ इतनी यात्रा काफी है। ठीक है मनुष्य अनन्तकाल से चलता जा रहा है लेकिन अनंतकाल से वो ठहरता भी रहा है। विश्राम भी करता है। अब हमें विश्राम करना चाहिये । हमारी यात्रा की जिज्ञासा समाप्त होनी चाहिये।

   चले थे मनुष्य के पैरों के निशान देखते हुये। निशान समाप्त हो गये और हम लोग चलते रहे चलते रहे और यहाँ तक आ गये। आगे थोड़ा और चलना चाहिये। आगे मनुष्य की अन्य बस्तियां भी हो सकती हैं।

  देखो जहाँ मनुष्य के पांव के निशान खत्म हुये थे वहीं दुनिया की सारी बस्तियां समाप्त हो गयी थीं। इसके आगे मनुष्य कभी गया ही नहीं था तो बस्तियां कैसे बसा सकता है। जहां हम हैं वहाँ जरूर कोई नयी बस्ती बस सकती है। मनुष्य जहाँ पहुंचता है वहाँ घर बनाने की जरूर सोचता है। घर बनता है और बनते बनते बस्ती बन जाती है.। फिर आता है समय बस्तियॉं खंडहर में तब्दील हो जाती हैं। मनुष्य आगे बढ़ जाता है फिर नयी बस्ती बनाता है। इस दिशा में मनुष्य का सफर एक ही आदमी का सफर रहा है। आजकल एक ही आदमी निरन्तर चल रहा है चलता जा रहा है। उसने कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं समझी। जब कि पीछे मुड़कर देखना भी जरूरी होता है। अपनी रचना का निरीक्षण भी जरूरी होता है। जरूरी होता यात्रा की उपलब्धियों का आकलन। जरूरी होता है अपनी ही कथा सुनना।

  लेकिन यहाँ जहाँ हम हैं कोई और आदमी कैसे आ सकता है। यहाँ तक आने के हमारे पैरों के निशान मिटाये जा चुके हैं। काले रसायन में डूब हुये हैं।

   हम तो देख रहे हैं न अपने पैरों के निशान काले रसायन में डूबे हुये होने के बावजूद भी।

   लेकिन हमारे लिये पीछे मुड़ने से बेहतर होगा इस ब्रह्मांड में एक नया घर बना लेना। यहीं पर एक नयी बसा लेना।

  ठीक है तुम नया घर बनाओ मैं पीछे लौटता हूँ रास्ता बनाने के लिये ताकी लोग आ जा सकें हमारे घर तक। मैं हटाता हूँ अपने पांवों पर जमे हुये काले रसायन को। एक चमकदार रास्ता बनाने के लिये।

   अजीबोगरीब झंझावात में फंसे हुये हैं हम लोग। अरे भाई रास्ता ही बनाया था हमने, कोई दीवाल तो बनाई नहीं थी, कोई खाई तो बनायी नहीं थी। फिर रास्ते को छिन्न भिन्न करने की कोशिश क्यों हो रही है। क्यों बनाई जा रही हैं दीवालें हमारे रास्ते में। क्यों खोदी जा रही हैं खाइयां।

   दुखी मत हो। नवनिर्माण के रास्ते की ये बाधाएं हैं। अब जर्जर भी हो चली हैं। हवा के एक झोंके से भहराकर गिर सकती हैं। उनके बारे में सोचो जो इस दीवाल से सिर टिकाये पड़े हैं। इस दीवाल को बनाने वालों की चिंता करो। भई जीवन मिला है जीओ, जीवन की दिशा में चलो। ये आत्मघात जैसी स्थिति तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक नहीं पहुंचा पायेगी। हाँ अगर तुम अपने को इतना बड़ा कलाकार समझते हो कि सिर्फ तुम्हारे ही सपने शेष रहेंगे। तो भाई तुम भी जाने वाले हो सपने की बात छोड़ो। हम अपने रास्ते को चमकदार बना लेंगे। तुम्हारी भावनात्मक संवेग तुम्हें ही बहा ले जायेगा ,हमें नहीं न ही हमारे रास्ते को। हम रास्तों को ठीक ठाक करके वापस आयेंगे। तुम भी हमारा इंतजार करना यहीं। भागना मत। रास्ते को साफ करने के लिये मैं गया और आया।

  समय लगेगा समय। यहां तक आ जाने के विपरीत यहाँ तक के लिये रास्ता बनाने में समय लगेगा। पहले यहाँ आओ मेरे पास तुमको एक दृश्य दिखाऊँ जो तुम्हें रास्ता साफ करने के कार्य से गहरा ताल्लुक रखता है। देख लो रास्ते को साफ करने में आने वाली बाधाओं को स्पष्ट रूप से। तुम्हें पता चल जायेगा कि तुम्हें क्या करना है। थोड़ा मेरे और करीब आओ यहीं से मैं दिखाता हूँ तुम्हें पीछे का नजारा। एक तलाश हमारे पद चिन्हों को ढूंढने की एक प्रयास हमारे पद चिन्हों को मिटा देने का। उस रौशनी पर नजर डालो बीच बाजार में वह ज्योति चक्रमण कर रही है। एक आदमी के पास जा रही है कह रही है मेरे पास आओ मैं तुम्हें सिखाऊंगी तुम्हें जीने की कला।

    देख रहा हूँ मैं उस ज्योति को। अरे भाई एक आदमी के चारों तरफ चक्कर लगा रही है। कहीं किसी इंसान के कपड़े से उसका स्पर्श हुआ तो उसके कपड़े जल उठेंगे-और देखो उस महिला के सिर पर बंधे हुये जुड़े के पास उस ज्योति को अगर बालों से उसका स्पर्श हो गया तब वो बेचारी के खूबसूरत बाल बीच बाजार में जल उठेंगे।

  उस रौशनी से बेखबर लोग अपने अपने कामों में इतना व्यस्त हैं । लगता है उसके अस्तित्व का उन्हें ज्ञान नहीं है। पर उससे कोई जलेगा नहीं जो जलेगा उसका समय पूरा हो चुका होगा। वो जो दीवार जर्जर हो गयी है वह दीवाल बिना किसी शोर शराबे के जमीन पर आ जायेगी।

   गौर से लोगों के चेहरों को देखो स्पष्ट लग रहा है कुछ लोग उस ज्योति को देख रहे हैं और नजरें बचाकर निकल ले रहे हैं। कुछ लोग वास्तव में उस ज्योति के अस्तित्व से अनभिज्ञ हैं। लोकप्रियता के शिखर पर बैठे हुये आदमी से लेकर नफरत की खाई में पड़े हुये आदमी वह ज्योति लगातार चक्रमण कर रही है। ज्योति से मनुष्य से प्रेम और नफरत की तरंगें वातावरण में फैल रही हैं। जहाँ भी जा रही है रौशनी मनुष्य का प्रतिबिम्ब उस रौशनी में साफ साफ दिख रहा है। मनुष्य अपनी प्रकृति की आकृति ज्योति में देखकर अपनी जीवन की दिशा में गुणात्मक परिवर्तन कर सकता है। लेकिन मनुष्य तो जैसे अदृश्य बंधन में बंधा हुआ है और अपने ही विनाश की ओर अपने पैरों से जा रहा है। ऐसा करने में ही अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर रहा है।

  रंगारंग भावों में, भावों की विविधता में मनुष्य की यह प्रकृति निर्णायक भूमिका अदा कर रही है। मजेदार बात तो यह है कि मनुष्य की प्रकृति वह नहीं है जो दिखायी पड़ रही है। ज्योति की रौशनी में उसकी वास्तविक प्रकृति दिखायी पड़ रही है। जाओ वहां तक जैसे हम लोग आये हैं-इसकी चर्चा तो बाद में होगी लेकिन वो रास्ता साफ करो। काले काले रसायन को अपने पद चिन्हों से मुक्त करो-एक बात स्पष्ट कर दूं, यहाँ से आगे भी रास्ता है। मनुष्य इसके आगे भी जाएगा। जाओ वापस लेकिन उस परिवेश में खो न जाना। जाओ लेकिन हम लोग वापस में बातें करते रहेंगे एक दूसरे दूर होने के बावजूद भी। अपनी मुश्किलों के गीत वहीं से गाना। मैं यहाँ से तुम्हारी स्थिति का गीत सुनाऊंगा।

 वापसी के बाद--

हेलो हेलो गीत हो तो सुनाओ न

सुनो

कोहरा कोहरा शाम धुआं सी सुबह लगती हैं

सूरज का आना सुन सुन कर रातें हंसती हैं

खामोशी से देख रहे हैं माझी की रंगरलियां

घर आंगन तक बिखर चुकी हैं अंगारों की डलियां

फौलादी पांवों ने रौंदा पृथ्वी की हरियाली

उन बागों का हश्र यही है बंधा हो जिनका माली

खामोशी से ढूंढ रहे हैं वो आवाज पुरानी

हमको जगत गुरु कहते थे हम थे गुरु की वाणी

कतरा कतरा ज्ञान नदी सी भूलें लगती हैं

सूरज का आना सुन सुन कर रातें हंसती हैं

स्वर्ण युगों के महके क्षण को जला चुके हैं

हम पृथ्वी के प्रथम नागरिक जिम्मेदारी भुला चुके हैं

जिन लम्हों को दफन कर दिया हम उनका सन्देश पढ़ रहे

जो मेरे पद चिन्ह ढूंढते वो मेरी पहचान कर रहे हैं

जग जीवन की अभिलाषा में जाने कितना जहर पिया है

नवयुग की अभिशप्त हवा ने जाने क्या क्या नाम दिया है

बिखरा बिखरा प्यार डगर पहचानी लगती है

सूरज का आना सुन सुन कर रातें हंसती हैं।

   सहारे तोड़ो, मित्र सहारे तोड़ो। सहारों की उम्मीद के पार जाओ। रास्ता साफ करने में आसानी होगी। खामोशी तोड़ो मित्र खामोशी तोड़ो दीवार गिराने में आसानी होगी। पूरा परिवेश ना उम्मीदी में जी रहा है। पूरा परिवेश ही कुछ बोलने को मचल रहा है।

  मैंने तो यहाँ से अपना गीत सुना दिया । अब तुम भी सुनाओ वहाँ से अपना गीत।

तो सुनो ,देखो और महसूस करो।

शोर हुयी भोर

भोर हुयी शोर

शाम का सूरज डूबा

फैला और अंधेरा

सोये मन मे डाला

फिर सपनों ने डेरा

शाम का सूरज डूबा

तन्हा हुआ अंधेरा

सन्नाटा गहराया

आहट बनकर आयी

जीवन सी एक काया

भोर हुयी शोर

शोर हुयी भोर।

शाम का सूरज डूबा

राहें हंसकर बोलीं

आ मेरी बांहों में

मन्जिल मुड़कर बोली

मैं तेरे कदमों में

शाम का सूरज डूबा

अंधेरा घबराया

सन्नटा चिल्लाया

सूरज भी शरमाया

ये किसकी है काया

शोर हुयी भोर।

   बिल्कुल ऐसा ही मुझे भी लग रहा है। कोई है हमारे पास दिखाई नहीं पड़ रहा है। यहाँ आने के बाद वहाँ से दिखने वाली रौशनी दिख नहीं रही है।

   दिखेगी दिखेगी। जहाँ जाओगे वहीं दिखेगी ,चलते रहो चलते रहो। यहाँ से आगे भी रास्ता है-मंजिलें हैं। मैं आगे चलता हूँ। तुम रास्ते बनाओ। मैं आगे चलता हूँ तुम अंधेरे से निपटो। मैं आगे चलता हूँ तुम दीवारें गिराओ और अब ध्यान से बाहर आओ। देखो अपने परिवेश की वास्तविकता को, समझो यथार्थ को।

  यहाँ बिल्कुल वैसा ही परिवेश है जैसा कि हमारे यहाँ होने की स्थिति में था। अब यहाँ से रास्ता साफ करने का काम मैं शुरू करता हूँ। लेकिन मेरी स्थिति उस ज्योति से भिन्न नहीं है जिसे हम लोगों ने वहाँ से देखा था। फिर भी असम्भव तो कुछ भी नहीं।

   ठीक है तुम अपना काम करो और मैं अपना। मिलते रहना यहीं आकर। बांटेंगे एक दूसरे का अनुभव बातों बातों में। तुम्हे इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि तुम्हें वहाँ कहाँ होना चाहिये। किस आदमी के पास होना चाहिये। दीवालें कैसे गिराई जाती हैं। खाइयां कैसे पाटी जाती हैं। वहीं पर दो चार दोस्त बनाओ।


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