Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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आनन्द

आनन्द

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मेरे घर के सामने हरसिंगार के पेड़ पर सुनहरी चिड़ियों का बसेरा है। इनकी आवाज बहुत प्यारी लगती है। कभी कभी घंटों मैं इनकी आवाज के जादू में खो जाता हूँ। इनके क्रिया कलाप देखकर आनंद की अनुभूति होती है। 

     एक दिन उनमें से एक चिड़िया उड़ती हुयी आ रही थी की वो किचन से निकलने वाली गर्म हवा की चपेट में आ गई। पंखे से नकलती हुयी गर्म हवा के झोंके से छिटककर लगा वो जमीन पर गिर जाएगी। लगा उसके पंख झुलस गए हैं लेकिन वो लड़खड़ाती हुयी भी जमीन के कुछ इंच ऊपर से ही फिर हवा में उड़ने लगी। एक बार फिर वो उड़ती हुयी हवा के झोंके के बीच से गुजरी। हाँ इस बार वो थोड़ा कम लड़खड़ायी। हवा के झोंके के बीच से वो तब तक गुजरती रही जब तक बिना लड़खड़ाये उड़ान सामान्य नहीं हो गई। 

    अब तो जब भी चिड़िया अपने घोसले से दाना चुगने के लिए निकलती है उसी रास्ते से होकर गुजरती है जब कहीं से भी अपने घोसले में वापस आती है उसी रास्ते से वापस आती है। जब ठंड बढ़ जाती है दूसरे परिंदे शीत से कांपते हुए अपने डैने फैलाकर धूप लेते हैं सुनहरी चिड़िया उसी गर्म हवा में अपने पंख फड़फड़ाकर ऊर्जा लेती है और सबसे पहले दाना चुगने निकल जाती है। आजकल एक और चिड़िया भी उसके साथ साथ रहने लगी है। 

    कभी कभी मैं सोचता हूँ की पहले वह चिड़िया जोखिम का आनंद भर लेती थी लेकिन आजकल वह जोखिम से ऊर्जा भी लेने लगी है। 



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