Surendra kumar singh

Action

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Surendra kumar singh

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वो फूल

वो फूल

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उसके घर के आंगन में, एक मिट्टी के गमले में लगा हुआ था एक पुष्प बृक्ष। सुंदर और आकर्षक। मैंने उसकी डालियों और पत्तियों को हाथ से सहलाया तो देखा पत्तियों के झुंड में एक कली फूल बनने को आतुर है। पुष्प बृक्ष मेरे लिये नया था। ऐसा पौधा मैंने कभी कहीं देखा नहीं था। बार बार मेरी निगाह उस पौधे पर जा रही थी। एक अनजान सा चुम्बकीय आकर्षण था उसमें। आश्चर्य तो तब हुआ जब मैंने उस पौधे को दौड़ी दूर से देखा। देखा कि पत्तियों के झुंड में एक खूबसूरत फूल खिला हुआ है।

मैंने अभी अभी तो देखा था, पत्तियों के झुंड के बीच एक कली तो जरूर थी, इतनी जल्दी वो कली से फूल कैसे बन गयी। फिर मैं पौधे के पास गया, देखा पत्तियों के बीच वही कली सहमी सहमी मुस्कराने की कोशिश कर रही थी और वो फूल जो अभी अभी मुझे खिला हुआ नजर आ रहा था कहीं नहीं था। मैं अपनी नजर पर झल्ला रहा था, भई पत्तियों के बीच कली तो अभी भी है।

मैं कुछ सोचते हुये वहाँ से दूर जाने लगा और जाते जाते एक बार फिर पीछे मुड़कर पौधे की तरफ देखा तो दिखा वही मुस्कराता हुआ फूल। सफेद रंग की पंखुड़ियां, किनारे किनारे गहरे नीले रंग की धारियां बीच मे पीले रंग का गुच्छा। हरी हरी पत्तियों के बीच खिले हुये फूल को देखकर मेरे मन में सिहरन पैदा होने लगी, डरते डरते मैं फिर पौधे के पास गया देखा फिर उस कली को पत्तियों के बीच मुस्कराने की कोशिश करती हुयी। मैंने निर्णय लिया कि अब मैं उस कली को लगातार टकटकी लगाकर देखूंगा। देखने लगा, रात हो गयी, पौधा अंधेरे में खो गया।

मैं वहीं जमा रहा सुबह हुयी, कली ही थी मैं उसे अनवरत देख रहा था शाम हुयी मेरी नजर अविचल कली पर जमी रही, रात हो गयी पौधा फिर अंधेरे में खो गया। सूर्योदय होने वाला है कली के अंदर से वही फूल जिसने मेरे अंदर उलझन पैदा कर दी थी, खिला हुआ पाया मैंने भोर में ही। मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि वो कली खिलने से दो दिन पहले फूल के रूप में मुझे क्यों दिख रही थी।


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