एक पल
एक पल
अज्ञानता ज्ञान की नकल करती है। यह चीज जिसे मैं यहाँ अज्ञानता कह रहा हूँ ,कल्पना भी हो सकती है। लेकिन एक पल के लिए मैं इसे अज्ञानता नहीं कह सकता। सिर्फ एक पल के लिये। इसके बाद इसे अज्ञानता भी कहा जा सकता है। क्योंकि यह वह एक पल है
जहाँ हम मैं, मैं हो गये हैं। एक मैं कल्पना की सार्थकता समझ सकता है। एक मैं कल्पना का ज्ञान समझ सकता है। यह वह एक पल है जहाँ कल्पना की सार्थकता और अज्ञानता का ज्ञान आपस में समाहित हो जाते हैं। यह वह एक पल है जो सिर्फ उत्तर है। यहाँ सरलता उलझन बन जाती है। सन्दर्भ जटिल हो जाता है। अभाव सम्पन्न हो जाता है। सहयोग हस्तक्षेप बन जाता है। सुरक्षा आक्रामक हो जाती है। विश्वास अविश्वसनीय हो जाता है। प्रेम हिंसक बन जाता है। अपने पराये हो जाते हैं। कल्पना सच में तबदील हो जाती है।
एक पल मुस्कराओ कि माल बिक जाये। आग लगा दो कि माल खप जाये। मुस्कराओ कि आग लग जाये। यही वो पल है जहां कल्पना की सार्थकता और अज्ञानता का ज्ञान वापस में समाविष्ट हो जाते हैं।
भगवान न करें इस पल का उस दुनिया से दीदार हो जाये जो मुस्कराने का सबब ही नहीं जानना चाहती। मुस्कराओ कि हम हैं। मुस्कराओ कि हम मैं में हो गये हैं। मुस्कराओ कि हम हैं।
