कविता
कविता
कभी कभी कोई कोई कविता मुझसे बात करती है,और जब भी ऐसा होता है में उसे सिर्फ सुनता हूँ।डूबता हूँ उसकी आवाज में और देखता हूँ उसका सपना।कुछ और नहीं होता है मेरे और उसके बीच।एक करिश्मा सा होता है,कि कविता शब्दों का समुच्चय मुझे निःशब्द कर देती है।लगता है कि कविताओं का संसार इस कविता में विलीन हो गया है।शब्द थे न कविता के आक्रोश, प्रतिरोध,जनवाद,साम्राज्यवाद,शोषण,उत्पीड़न,साम्यवाद सबके सब कविता में विलीन हो गये हैं।सोचता हूँ शब्द निःशब्द हो गये हैं तो क्या हुआ,कविता में विलीन हो गये तो क्या,हैं तो सही कविता के अंदर।
ब्यवस्था को बदलने और सहेजने की कोशिश,जीवन को बदलने और सहेजने में विलीन हो गयी है।इस कोशिश में कविता इतनी आकर्षक हो गयी है कि अब तक मैं उसे देखे जा रहा हूँ।सम्मोहित हो चला हूँ कविता के सौंदर्य में और कविता मुझसे बात करने लगी है और मैं धीरे धीरे कविता में विलीन हो रहा हूँ।