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Kishan Negi

Tragedy Inspirational

3.7  

Kishan Negi

Tragedy Inspirational

काल की परछाई (Prompt -2)

काल की परछाई (Prompt -2)

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280


ये कौन उतरा है मानव की धरणी पर 

किस गृह से आया विचित्र प्राणी 

प्रचंड रूप करके धारण, विराट है काया इसकी

तन से जैसे कोई जंतु शिकारी 

शायद ठीक से पहचाना नहीं हमने 

न कोई जंतु, न कोई प्राणी 

कहीं ये काल तो नहीं, जो आया है 

विकराल रूप करके धारण 

मंडरा रहा है काल बनकर मानव की दुनिया में 

कितना भयंकर, कितना ख़ौफ़नाक चेहरा है 

मानव सभ्यता क्या टिक पाएगी, क्रूर पंजों के सामने 


हे मानव, घबराना नहीं, खोना नहीं विवेक 

दुश्मन भयंकर है ज़रूर, मगर तेरे बुलंद हौसले

हैं सक्षम इससे मुकाबला करने को 

अपने कर्मों की प्रचंड ज्वाला में इसको 

तुझे करना होगा भस्म तत्काल 

जज्बाती मत होना, याचना मत करना 

तू मनु की संतान है, कर्म ही तेरा धर्म है 

डिगना नहीं, झुकना नहीं कर्म पथ पर 

होना नहीं विचलित, पिशाच के सन्मुख 

हे मानव, अगर तू अब न सम्भला तो 

नष्ट हो जाएगी तेरी समूल सभ्यता, तेरी संस्कृति 

उठा खड्ग, कर प्रहार दुश्मन के सर पर 

अपने काल को सुला दे मौत की नींद

स्वयं पर कर यकीन, विजय तेरी ही होगी 


 




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