तुम बहुत याद आते हो
तुम बहुत याद आते हो
जब छाँव धूप - सी
सर्दियों के रूप - सी हो जाती है
तो तुम बहुत याद आते हो...
शामें, जब भी कुछ अजीब - सी सरगोशियां करती हुई बड़बड़ाती हैं
रात भी, बस यूँ ही जाग कर गुजर जाती है
तो तुम बहुत याद आते हो...
पहले, तो मैं यूँ भी समझ लेता था कि तुम हो ही नहीं कहीं
लेकिन जब रात के आख़िरी पहर, नींद यूँ ही उचट जाती है
तो तुम बहुत याद आते हो...
बात निकली है तो चलो कर भी लेते हैं, दिल में जो दबे - छिपे से घाव हैं, भर भी लेते हैं
बेखुदी के आलम में आज भी, जब हम अपने घर का रास्ता भूल जाते हैं
तो तुम बहुत याद आते हो...
इबादत की तरह मोहब्बत की थी कभी, तुमसे कुछ कहने की जुर्रत की थी कभी
दरख़्त से टूट कर आज भी जब कोई पत्ता, आवारा - सा हवा में लहराता है
तुम्हारे गेसुओं की खुश्बुओं - सा, फजाओं में बिखरता है
तो तुम बहुत याद आते हो...

