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VINOD KR SAHU

Abstract Inspirational

5.0  

VINOD KR SAHU

Abstract Inspirational

परिवर्तन

परिवर्तन

1 min
350


जाकर कह दो सर्द हवाओं से, कि इधर ना आयें अभी...

पेट के भड़कते शोलों को, पानी से बुझाकर

एक बच्चा अभी सोया है फुटपाथ पर...

भूख से लड़ना नियति है उसकी... लड़ता है, वह जीतता है...


उसके भी कुछ सपनें होंगे... कुछ हँसते से, कुछ रोते से,

बिना तेल की बाती जैसे... जलते बुझते, बुझते जलते,

स्वप्न टूटना नियति है उसकी... टूटते हैं, बनते हैं...


फिर बात वही लब पर आई... जीवन जीना है, जीवन भर 

हर दर्द ज़माने का पीकर, लोगों की ठोकर खाकर

गिरना नियति है उसकी... गिरता है, उठता है...


भेद भाव के कलंक से मुक्त, मिलकर अपने जैसे लोगाें से 

कहता है पीड़ा हृदय की, दो बूंदे छलकाता है

रोना नियति है उसकी... रोता है, हँसता है...


विश्वास उसका अडिग अपना है, फिर परिवर्तन आएगा

रेतीली आँखों में खिलेंगे सपनें, हृदय में उसके, फिर जोश नया लहराएगा

परिवर्तन नियति है उसकी, परिवर्तन आएगा, परिवर्तन आएगा, परिवर्तन आएगा...


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