अदा
अदा
अदाओं की बिजलियाँ गिरा के मुस्कुराते हैं
हे खुदा, वो ये क्या सितम ढाते हैं...
मद भरे नैनन से, दिल पे बान चलाते हैं
और हाल-ए-दिल भी हुज़ूर, बड़ी अदा से पूछने आते हैं...
वल्लाह क्या शोख़ी, क्या क़ातिल अदा है
हुस्न ऐसा, कि चरागों में रौशनी लाते हैं...
बेदखल कर दो अब हमें हमारी कौम से
अब तो हम अपने काफिर की रह-गुजर पे जाते हैं...
शहर में क़त्ल-ए-आम होने का अंदेशा है जिनके लिए “मन ”
सितम देखिये, वो बेनक़ाब सरे-आम चले आते हैं...