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Archana Verma

Tragedy

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Archana Verma

Tragedy

रुख्सत

रुख्सत

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ये जो लोग मेरी मौत पर आज

चर्चा फरमा रहे हैं

ऊपर से अफ़सोस जदा हैं

पर अन्दर से सिर्फ एक रस्म

निभा रहे हैं

मैं क्यों मरा कैसे मरा

क्या रहा कारण मरने का

पूछ पूछ के बेवजह की फिक्र

जता रहे हैं


मैं अभी जिंदा हो जाऊँ

तो कितने मेरे साथ बैठेंगे

वो जो मेरे रुख्सत होने के

इंतज़ार में कब से घड़ी

देखे जा रहे हैं

इन सब के लिए मैं

बस ताज़ा खबर रहा उम्र भर

जिसे ये बंद दरवाज़ों के पीछे

चाय पकौड़ों के साथ

कब से किये जा रहे हैं


ऐसे अपनों का मेरी मय्यत

पे आना भी एक हसीं वाक्या है

जहाँ ये अपनी ज़िंदगियों की

नजीर दिए जा रहे हैं

सिलसिला रिवायतों का जब

ख़तम हो जायेगा

फिर किसे मिलेगी इतनी फुर्सत

फिर कौन नज़र आएगा

सब रिवायते अदा कर

ये भी अपनी “मंजिलों “को ओर

बढ़े जा रहे हैं


इतनी अदायगी कैसे कर लेते हैं लोग

बिना एक्शन बोले भी

आँसू बहाए जा रहे हैं

न मेरे ग़म न मुफलिसी में

कभी रहे शामिल

अब मेरी तेरहवी पर भी

दिल बहलाने को

DJ लगवा रहे हैं …


नजीर -: मिसाल, तुलना



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