मुझे छोड़ दे
मुझे छोड़ दे
कल ही तो इस घर में आयी हूँ
थोड़ा वक़्त तो मुझे भी लगेगा
पर क्या पता था
पति परमेश्वर के कदम कमरे में पड़ते ही,
अनजाना डर जोरों से सताने लगेगा।
कलाइयाँ मेरी नाज़ुक,
जिनमें चूड़ी अपने सुहाग की
लंबी उम्र के लिए पहनी है
इसकी इज़्ज़त मुझे रखनी है
ये सारा जग कहेगा, पर किसे बताऊँ?
यहाँ मेरा सुहाग ही
मेरी आबरू लूटने को तरसेगा।
जिसने वचन लिया की
मेरी रक्षा दुनिया से करेगा,
मुझे क्या पता था,
बन्द कमरे में वो खुद दुशासन बनेगा।
खाना तो बराबर मिलता है उसे,
फिर क्यों मेरे जिस्म का भूखा है।
आँसू ही मेरे साथी हैं,
क्योंकि आवाज़ को तो सिंदूर ने रोका है।
समाज के ताने भी अच्छे लगते हैं मुझे,
और इनकी गंदी गालियाँ भी,
क्योंकि दिन ढलने के ख़ौफ़ से
जिस्म ही नहीं, कांपती है मेरी रूह भी।
बड़ी मोहब्बत है ना नंगे बदन
और बिस्तर से?
अरे, तेरे छूने पर भी ठंडी हूँ,
और तप रही हूँ भीतर से।
माँ बाप को लगता है,
मैं खुश हूँ तेरे आंगन में,
साड़ी उतारूं तेरे लिए?
तू तो दाग है मेरे दामन में।
जिसने पूछा नहीं कभी,
तुम्हारी क्या राय है।
बीवी नहीं तवायफ़ समझता है,
बस, यही छोटा सा अन्याय है।
अब सह पाना मुश्किल है,
ले आज मुझ को मार दे।
या, एक मौका देती हूँ,
निकाल अपना वारिस मुझसे,
और मुझे छोड़ दे।
