सड़क पर जिंदगी
सड़क पर जिंदगी
पहले कौन किसका सहारा था
कौन अब इनके सहारे है
बेचारे ये सब किस्मत के मारे है
वकत के हाथों में मजबूर सब हारे है
छोड़ गाँव में अपना परिवार ,
महानगरों में बसाया था संसार,
महामारी ने डाली इन पर ऐसी मार,
भागने से मजबूर हुए और लाचार।
दो वक्त की रोटी भी नहीं इनके पास में,
सांस भी टिक गए हो जैसे सांस में,
आपकी मेहरबानी के अब ये मोहताज है,
डर उस बीमारी का जो लाइलाज़ है।
एकटक कर रहे उस वक्त का इंतज़ार,
पुनः होगा जब जन शक्ति का संचार .
कब फिर वही चहल पहल लोटेगी,
सड़को पर पहले सी जिन्दगी दौड़े।
बस यह तो थोड़े दिनों की बात है
कोरोना को मिलने वाली मात है
घर मे रह अपने को सीमित कर लो
किसी पुरानी कला को जीवित कर लो
घबराओ मत,अच्छे दिन भी आयेंगे
कुछ नए हमदर्द भी पहचाने जायेंगे
चंद रोटियाँ इनके लिए भी बनाकर,
जीवन अपना भी तुम संवार लो
ख़ुदा तुम्हें देख और सुन रहा है
सेवा करके इन्हें भी उभार लो