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rk sharma

Abstract

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rk sharma

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दोस्ती

दोस्ती

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यूँ तो भीड़ में हज़ारों चेहरे जो गुजर जाते है

कुछ ख़ास ही होते है, जो दिल में उतर जाते है

सालो साल वो ना जाने, कहाँ गुम हो जाते है

फिर दीदार होते ही, कितने लम्हे भी थम जाते है


उनके लफ़्ज़ सुनते ही, कितने मंजर उभर जाते है

ना जाने मेरे दिल से कितने भँवर भी संवर जाते है

शक्लें तो बदलती है पर , हरकतों से जान लिया करते है

बरसों बाद भी आवाज़ से, हम पहचान लिया करते है


दोस्तों के हाथ मिलाने का, दिलकश अन्दाज़ होता है

मेरे कंधे पर उनका हाथ, जैसे एक सरताज होता है

परेशानी में दिलासा का, एक बड़ा अहसास होता है

लगताउनकी कमी में आज भी, कोई मेरे पास होता है


हस्ती कितनी भी बनाओ, जहाँ में बन सकती नहीं 

बस्ती कोई भी मुक़म्मल, यहाँ सदा टिक सकती नहीं 

जिस तरह बादलों से रोशनी, सूरज की ढक सकती नहीं 

एक सच्ची दोस्ती ही है, जो यहाँ मिट सकती नहीं।      


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