मौत से घबरा रहा हूँ मैं
मौत से घबरा रहा हूँ मैं
कुछ नहीं लिख पा रहा हूँ मैं ,
कुछ नहीं कह पा रहा हूँ मैं।
ज़िंदगी कुछ इस कदर रुठी है सबसे ,
मौत से घबरा रहा हूँ मैं।।
खो गई है अब तो अपनी सब खुशी ,
चाँद से रूठी हो जैसे चांदनी।।
नींद पलकों पर हो जैसे आ बसी ,
खुशियाँ मानो बन चुकी हैं ख़्वाब सी।।
ठौर अपना डगमगाता पा रहा हूँ मैं ,
बेबसी के मर्सिया को गा रहा हूँ मैं।।
मन मुसाफिर पूछता , है क्या खता ?
इतनी मुश्किल सी सजा मैं पा रहा।
अब तो रब से मांगता इतनी अता .
दे सुकूनी मंजिलों का अब पता।।
इस जहां से बेमज़ा ही जा रहा हूँ मैं ,
उस जहां में तुमसे मिलने आ रहा हूँ मैं।
कुछ नहीं कर पा रहा हूँ मैं ,
मौत से घबरा रहा हूँ मैं।।