चिरैया
चिरैया
लता के बीच बैठी चिरैया
एक आंख से आसमान पर
दूसरी से धरती पर
नजर रखती है।
हर आवाज पर
हर हलचल पर
उसका ध्यान होता है
शिकारी तो कहीं भी होता है।
इसी बीच चिरैया
चहकती है
उड़ान भरती है
प्रणय करती है
सोचती भी है
सुरक्षित नीड़ का
जहां कोई शिकारी
उसे देख ना पाए।
अपने नन्हे बच्चो के लिए
दाना चुगती है खुद खिलाती है
फिर निकालती है नीड़ से उन्हें
जीना और उड़ना सिखाने के लिए
आक्रांताओं से भरे मधुबन को
कलरव से गुंजायमान करने के लिए।
कद नहीं हौसला बड़ा होता है
नन्ही चिरैया को भी
अपने पंखों के दम पर ही
उड़ान भरना होता है।