परीक्षा
परीक्षा
एक गांव में मदनलालजी अध्यापक रहा करते थे।
बच्चों को गिनती और हिसाब सिखाया करते थे।
सब उन्हें ज़मीर के सच्चे और ईमानदार कहते थे।
बच्चों को सड़क किनारे बिठाकर पढ़ाते रहते थे।
एक बच्चा था नालायक और पढ़ाई में बड़ा फिसड्डी।
गिनती और हिसाब बन गए उसके गले में फंसी हड्डी।
उसने परीक्षा पास करने को मदनलाल को पटाया।
वह उनके ज़मीर को कबूतर जैसे खरीद नहीं पाया।
अपनी कमज़ोरी पर पर्दा डालने की सोच रहा था।
मगर वह अपनी चाल में सफल नहीं हो पा रहा था।
उस को मदनलाल की ईमानदारी पर गुस्सा आया।
मदनलाल से बदला लेने को वह हद पार कर आया।
वह निहत्थे मदनलाल की कमर पर प्रहार कर आया।
मदनलाल दर्द से कराह उठे पर उसको तरस न आया।
वे अपना बचाव न कर सके और ज़मीन पर गिर पड़े।
आख़िरी सांस तक अपनी ईमानदारी पर ही रहे अड़े।
