कैनवास
कैनवास
चित्रकार का कोरा कैनवास
रंगो से भरना है अहसास
रक्ताभ सूर्य हो या शशि आकाश
या पर्वत से गिरता धवल जल प्रपात।
मयूर नृत्य या हंसिनी का प्यार
अलमस्त बच्चों का उल्लास
या आंचल में शिशु की प्यास
या रेखांकन में बस हो श्रृंगार।
या विचरे मन उन दृश्यों में भी
टूटे फूटे घास फूंस के मकानो में
जहां विवश अर्धनग्न अशक्त देह
करती है श्रम जेठ की दुपहर में भी।
या उकेरूं उन गिद्ध सी निगाहों को
जो धंसी हैं सुलभ वंचितों के तन पर
भर लेने को अपनी अक्षय झोली
छीन के उनके समस्त अधिकार।
चित्रकार का रंग बिरंगा कैनवास
आड़े तिरछे रंगो का भ्रमजाल
कहीं काला तम कहीं श्वेत प्रकाश
समझो जैसा मन में हो अहसास।
