दोस्त
दोस्त
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पुरानी यादों में
कुछ वाकये हैं
उनके किरदारों में
चंद पुराने यार हैं
वक्त बेवक्त मैं
जब उलझता हूं
उन यादों को
उंगलियों से कुरेदता हूं
कहीं महक आती है
पारिजात के फूलों सी
कहीं गीत संगीत
मद्धिम सा बजता है
छू जाती हैं सर्द हवाएं
जेठ के महीने में
कभी भीग जाता हूं
पतझड़ के मौसम में
खिलखिला के हंसते हैं
दोस्त वो पुराने
किस्से कहानियों का
पुराना दौर चलता है
अनगढ़े वक्त की मासूम बातें
इस दौर में बिछड़ सी गई हैं
खुद को साबित करने में गुल्लक
लोहे की तिजोरी में खो सी गई है ।।
