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अजय गुप्ता

Abstract

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अजय गुप्ता

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आसमान

आसमान

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वो दूर पहाड़ी पर 

जो वेधशाला है

वहां एक बूढ़ा आदमी

सबको आसमां दिखाता है


जवां रातो में जागता है

नक्षत्र, तारों से बात करवाता है

दिखाता है सप्त ऋषि और ध्रुव तारा

तीन तारों को ओरायन बेल्ट बताता है


एक तारे को दिखा कर बोला वो

ये सितारा था कभी पर अब नहीं है 

बहुत पहले स्याह गर्त में डूब गया ये

रोशनी चली थी तब,अब पहुंच रही है


कहता है वो बूढ़ा आदमी कि 

नक्षत्र उदित और अस्त होते हैं

तारों का भी जन्म और अंत होता है 

पर आसमां में हर रोज जश्न होता है


वो देखो पहाड़ी के पीछे से अम्बर में

एक चमकती नदी सी आ रही है

ये आकाश गंगा है जिसमे

सारी सृष्टि खुशी से नहा रही है


घटित होता है सब अपने समय से

सितारों को भी कहां पता होता है

उनके खंड खंड बिखरने पर भी

रोशन आसमां होता है।


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