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अजय गुप्ता

Abstract

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अजय गुप्ता

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पीपल पर्णिका

पीपल पर्णिका

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अत्यंत कोमल,

धानी कोपलें

कुछ परिपक्व

पीपल के पर्ण।


कुछ कम्पन

फिर नर्तन

स्व करतल

फिर वर्तन


कुछ पर्ण

हवा संग

जाने कहां

उड़ चले।


ना उन्हें मोह

ना कोई विछोह

अनंत गगन

आत्ममुग्ध पर्ण।


किरण को सहेजती

धरा पर बिखेरती

कुछ घनी धूप से

खेलती पर्णिका।


कोयल भी आती

कोई धुन गुनगुनाती

भवरों को बुलाती

नाचती पीपल पर्णिका।


घन से भी घनी

शाखाओं से जुड़ी

पथिको को छांव देती

पीपल की महान पर्णिका।


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